Wednesday, May 26, 2010

न लिखने का कारण!!!

दो हफ्ते से ऊपर गुजर गए, एक भी पोस्ट नहीं लिख पाया हूँ ब्लॉग पर। कुछ आलस, कुछ काम और कुछ घूमना-फिरना; दो हफ्ते कैसे बीत गए पता नहीं चला। पिछले हफ्ते माँ-पिताजी के साथ पुणे घुमने चला गया था। कोई ख़ास कारण नहीं था बस एक पारिवारिक छुट्टी थी। ज्यादा लम्बी भी नहीं थी, पुणे में सिर्फ 3 दिन ही रहना था, 3 दिन तो ट्रेन में ही बीत गए। खैर, एक सुखद यात्रा रही जिसमे काफी कुछ मिला जो लम्बे समय तक याद रहेगा।
आज जब अपने ब्लॉग की तरफ ध्यान दे रहा था तो पाया कि काफी दिनों से कुछ सही मायनों में लिखा नहीं। यूँही समय काटने जैसा ही रहा ब्लॉग की तरफ ध्यान। कुछ लिखना है इसलिए कुछ भी लिख दिया, सिर्फ यही बात रही और कुछ नहीं। लिखने के लिए कोई ढंग का विषय नहीं मिल पाया इन दिनों। अभी जब सोच रहा हूँ कि ये 'ढंग का विषय' आखिर चीज क्या है तो कुछ ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा। ज़रा बुद्धिजीवी की तरह सोचूं तो जवाब आता है कि हर वो विषय जो कुछ सोचने को मजबूर करता है वो एक 'ढंग का विषय' है मगर यथार्थ की ओर जाता हूँ तो कुछ और ही जवाब मिलता है। यथार्थ तो सिर्फ ये कह रहा है कि हर वो विषय जिसपर किसी को गरियाने का स्कोप बनता है वो 'ढंग का विषय' है।
बचपन में जब हिंदी की कक्षा में यथार्थ और यथार्थवादी जैसे शब्दों को सुनता था तो मतलब समझ नहीं पाता था। आज यथार्थ का मतलब बड़ी अच्छी तरह से समझ सकता हूँ। जो मुझे मेरे औकात का दर्शन कराये वो यथार्थ है। बुद्धिजीवी बनकर एक 'ढंग के विषय' की खोज करता फिरता हूँ मगर वो विषय मिल जाने पर भी कुछ लिख नहीं पाता। कारण सिर्फ इतना कि उसमे किसी को गरियाने का स्कोप नहीं बनता। सच कहूं तो मूल कारण है कि बुद्धिजीवी हूँ ही नहीं मैं। मेरी औकात बस TRP के चक्कर में पड़े उस हिंदी न्यूज़ चैनल के जितनी है जो किसी भी समाचार के सिर्फ उस पक्ष को दिखाता है जिसमे मसाला हो, जिससे किसी की आलोचना आराम से की जा सके।
बड़ी आसानी से किसी को भी गरियाता चला जाता हूँ अपने ब्लॉग पर और बाद में खुश भी होता हूँ कि आज कुछ दमदार लिख दिया। कभी सरकार को गरियाता हूँ, कभी समाज को, कभी प्रशासन को तो कभी जनता-जनार्दन को। जब कोई नहीं मिलता तो खुद को गरियाने बैठ जाता हूँ। अब लीजिये यही पोस्ट देख लीजिये। आज जब कोई नहीं मिला तो खुद को गरिया रहा हूँ। इस नकारात्मकता से कब मुक्ति मिलेगी पता नहीं। पहले भी ये सवाल उठा चुका हूँ और कई ब्लॉगर साथियों ने भी उठाया है इस सवाल को मगर जवाब कभी नहीं मिला। अपेक्षा भी नहीं है। खैर छोडिये, लम्बे-लम्बे भाषण पहले ही दिए जा चुके हैं इस विषय पर। एक बार फिर से पकाने का कोई इरादा नहीं मेरा। नकारात्मकता के खिलाफ मोटे-मोटे अक्षरों में पोस्ट लिख दी जाएगी मगर जब पुनर्वलोकन होगा तो पाऊंगा कि ये पोस्ट भी नकारात्मकता से भरी एक साधारण पोस्ट है जिसमे मेरी औकात एक बार फिर सामने आ रही है। रहने दीजिये, मेरी औकात सबके सामने नहीं आये यही बढ़िया है। कम से कम मैं भी खुश रहूँ कि मैं हूँ एक बुद्धिजीवी, कि मैं भी लिखता हूँ उन 'ढंग के विषयों' पर। अभी के लिए नमस्कार! कुछ सवालों के साथ फिर हाज़िर होऊंगा। नमस्कार!!!

2 comments:

Jandunia said...

ब्लॉग अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। आपकी पोस्ट पढ़ी। पढ़कर अच्छा लगा। उम्मीद है आप लिखना निरंतर जारी रखेंगे। मुद्दों पर चर्चा होते रहनी चाहिए।

Udan Tashtari said...

एक बार फिर से पकाने का कोई इरादा नहीं मेरा-पूरी रामायण गा गये तब ये ख्याल आया आशु?? हा हा!!

मजाक कर रहा हूँ भाई.